ए
वुसतुल्लाह ख़ान पाकिस्तान / बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए Updated Sat, 18 Feb 2017 02:41 PM IST
मेरी पीढ़ी चिट्ठी लिखती थी, चिट्ठी भेजती थी। इश्क भी चिट्ठी से शुरू होता था और खत्म भी चिट्ठी पर। चिट्ठी आई है, वतन से चिट्ठी आई है, ये सुनकर आंखें तर होना, कल की ही तो बात है।डाक बाबू जैसे हमारे परिवार का हिस्सा था। और फिर वो टेलिग्राफ ऑफिस का तार बाबू। हर छोटे शहर और कस्बे का पत्रकार सब पर धौंस जमाता था, मगर तार बाबू को आते-जाते सलाम करना नहीं भूलता था।
No comments:
Post a Comment